Friday, May 15, 2009
क्यों अपनी ही पोल खोलना चाहते हो
चुनाव क्या आया सारे के सारे नेताओं को विदेशो में जमा काले धन की चिन्ता सताने लगी। अभी तक किसी को इस तरफ ध्यान देने की फुरसत नहीं थी पर चूंकि चुनाव में मतदाताओं को भ्रमित करना एक सबसे बडा फंडा है तो नेताओं ने काले धन का शिगूफा छोड दिया। पहले शरद यादव ने भाषण पेला कि भारत के लाखों करोड रूपये स्विस बैको में जमा है यदि उन्हें वापस बुला लिया जाये तो भारत का हर गरीब लखपति बन सकता है फिर पीएम इन वेटिंग आडवानी जी ने उनके सुर में सुर मिलाया और कह दिया कि यदि उनकी सरकार बनी तो वे सारा का सारा काला धन वापस भारत में ले आयेंगे आडवानी जी की होशियारी काबिले तारीफ है क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि सरकार तो उनकी बनना नहीं है और जब तक सरकार नही बनेगी वे काला धन वापस ला नही पायेंगे । कल के दिन कोई पूछेगा तो साफ कह देगे कि हमने तो वादा किया था कि आप लोग हमें जिता दो पर जब आपने हमें जिताया ही नही तो हम कैसे वो पैसा वापस ला सकतें थे यानी न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी अपना सोचना ये है कि आखिर ये नेता क्यों अपनी ही पोल खुलवाने के चक्कर में लगे हैं सबको मालूम है कि नेता बनते ही इंसान नोटों में खेलने लगता है पांच साल पहले जो संपति वो घोषित करता है पांच सालों में ही वो संम्पति दस बीस गुना बढ जाती है। हर नेता करोडो का मालिक हो जाता है अब कोई इनसे पूछे कि हुजूर आप का न तो कोई धंधा है न ही कोई नौकरी फिर पांच सालों में ही आप इतना पैसा कहां से कमा लेते हो? कोई अपनी संम्पति दो करोड बतला रहा है तो किसी के पास पांच करोड है तो कोई पचास करोड का मालिक है अचानक इतना पैसा आता कहां से है क्या नेता बनते ही इन लोगों के बंगलो में नोटों का पेड फलने फूलने लगता है कि देखते ही देखतें उन पेडों से पके आम जैसे नोट टपकने लगतें हैं। अपना ख्याल तो ये है कि इन नेताओं को विदेशो में जमा भारत के पैसों की चिन्ता छोडकर अपने ही देश में पल रहे काले धन की चिन्ता करना चाहिये। इधर कौन सा माल कम है देखते ही देखते फटेहाल नेता सत्ता में आते ही करोडपति बन जाता है गाडी आ जाती है बंगले बन जातें है पर कोई चूं नहीं करता कोई किसी के खिलाफ नही बोलता क्योंकि हर कोई हमाम में नंगा है। एक बात और भी है कि यदि आदमी पैसे न कमाये तो करे भी तो क्या करे। आजकल नौकरियां मिलती नही है धंधे में पूंजी की जरूरत पडती है ऐसे में अपने बाल बच्चों के लिये यदि कोई चार पैसे बचाकर विदेशी बैंको में जमा करा भी देता है तो इसमें बुराई भी क्या है हर इंसान को अपनी और अपने बाल बच्चों की चिन्ता होती है वो भी सोचता है कि कल उसके मरने के बाद उसका बेटा उसे गाली न दे ये न कहे कि साला बाप मर तो गया पर मेरे लिये कुछ नहीं कर गया। यही सोचकर लोग बाग सारे दो नंबर के धंधे करते है कि कम से कम दो पीढी के लिये तो व्यवस्था कर ही जायें वैसे कोशिश तो उनकी पूरी सात पीढी की रहती है फिर भी दो तीन पीढियों के लिये तो वे सब कुछ कर ही जाते है अपना मानना तो ये है कि विदेशों से काला धन वापस लाने की ये सारी बातें जनता को बेबकूफ बनाने की बाते हैं जो लोग इस बात की मांग कर रहे है वे भी तो सत्ता में रहे हैं यदि देश के पैसों की इतनी ही चिन्ता थी तो उस वक्त क्यों पैसा वापस नहीं बुलवा लिया। इन सब बातों में कुछ नही रखा है इसलिये हर आदमी चाहे वो नेता हो अफसर हो व्यापारी हो या फिर और कोई एक ही दोहे पर भरोसा करता है नोट नाम की लूट है लूट सके तो लूट अंत काल पछतायेगा जब कुरसी जायेगी छूट।
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जनता तो बेवकूफ बनती ही रही है, बनती ही रहेगी। ऐसा इनका मानना है
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