Tuesday, July 6, 2010

अचरज वाली चीज तो है ही वो

संसार के सबसे बडे दादा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी पर एकाएक बहुत बुरी तरह से ‘‘फिदा’’ हो गये। उन्होंने उनकी तारीफ में कसीदे कढते हुये कहा कि जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो सारी दुनिया उन्हें सुनती है यदि देखा जाये तो बराक ओबामा ने सौ फीसदी सच बात कही है क्योंकि जैसे किसी मां बाप को बच्चा पहली बार मां या पापा कह दे, जैसे किसी लडके को कोई लडकी पहली बार ‘‘आई लव यू’’ कह दे, जैसे किसी भिखमंगे को अचानक लाख रूपये की लाटरी मिल जाये, जैसे किसी बेरोजगार को नौकरी मिल जाय, जैसे विवेक ओबेराय को ऐश्वर्या मिल जाये, जैसे हर बार जमानत जब्त होने वाले नेता को चुनाव में जीत मिल जाये तो इन तमाम लोगों को जितनी खुशी होगी उतनी ही खुशी बराक ओबामा को मनमोहन सिंह को बोलते हुये देखकर हुई क्योंकि उन्हेंभी इस बात की पुख्ता जानकारी ह नरसिंहाराव के बाद ये हिन्दुस्तान के दूसरे ‘मौनी
बाबा’ है जो भारत में राज कर रहे है शायद यही कारण था कि जब मनमोहन सिंह को बराक ओबामा ने बोलते हुये देखा तो उनका रोम रोम खुशी से भर गया मारे खुशी के उन्होंने कह दिया कि जब मनमोहन सिंह जी बोलते हैं तो सारी दुनिया उन्हें सुनती है एक हिसाब से उनकी बात में दम है क्योंकि कोई ‘‘लंगडा’’ यदि चलने लगे कोई ‘‘अंधा’’ देखने लगे कोई ‘‘विकलांग’’ तैरने लगे कोई ‘‘हवाई जहाज’’ पानी में चलने लगे और ‘‘रेलगाडी’’ हवा में उडने लगे तो उसे सारी दुनिया अचरज से देखेगी ही यही मन मोहन सिंह के साथ हुआ. जो इंसान कभी कुछ बोलता ही नही है उसे बोलता देख बराक ओबामा का आश्चर्य में आना स्वाभाविक था. बराक ओबामा तो फिर भी विदेशी है देश के ही ऐसे करोडो लोग हैं जिन्होंने कभी मनमोहन सिंह के ‘‘मुखारबिन्द’’ से शब्दों को झडतें देखा या सुना नहीं है है उनके मुंह पर एक अदृश्य पट्टी बंधी हुई है और जब जरूरत होती है वे दस जनपथ में जाकर अपनी पट्टी का थोडा सा हिस्सा खुलवा कर आ जाते हैं और जितना वहां से आदेश होता है उतना बोल कर फिर पट्टी के यथास्थान लगा लेते हैं पिछले दिनों देखो न छै साल में बार कितनी ‘‘रिक्वेस्ट’’ के बाद उन्हे पत्रकारों से बात करने की ‘‘परमीशन’’ मिली. पत्रकार लोग भी भारी भारी प्रश्नावलियां लेकर पहुच गये सिंह साहब की पत्रकारवार्ता में सोचा था सब कुछ पूछ डालेंगे एक ही झटके में पर साहब जी को तो जितने की परमीशन मिली थी वे उतना ही बोले. धरे के धरे रह गये पत्रकारों के सवाल. बार बार कुरेदने पर उन्होंने इशारे इशारे में समझा दिया कि भाई लोगों क्यो मेरी कुरसी खतरे में डाल रहे हो जितना आदेश था बतला दिया इसके आगे एक शब्द भी बोलने की मनाही है तो मैं क्या करूं? यही कारण था कि उन्हे बोलता देख ‘‘बराक’’ ‘‘अवाक’’ रह गये पर शायद लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि अमेरिका में जाकर बोलने पर इसलिये उन पर कोई बंदिश नहीं थी क्योंकि बोलने वाला और बोलने वाले को परमीशन देने वाला दोनों ही अमेरिका के पिछलग्गू हैं

दीर्घ विश्राम के बाद फिर हाज़िर हूँ मित्रो

इस देष के लोगों और मीडिया को लगता है दूसरा कोई काम नहीं बचा है जरा सी बात हुई नही ंकि सारी दुनिया सर पर उठा लेते हैं सरकार ने रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के भाव क्या बढा दिये सारे देष में जेैसे भूचाल सा आ गया. उधर ममता दीदी नाराज हो गई इधर भाजपा ने हमेषा की तरह तत्काल से पेष्तर अपने मनमोहन सिंह से स्तीफा मंाग लिया दूसरे दल प्रदर्षन करने में जुट गये अखबारों में तमाम ‘‘लुगाईयों’’ की फोटो छपने लगी कि इस मंहगाई के बढने से उनका सारा बजट बिगड जायेगा. अब वे कैसे रोटीे बनाकर अपने ‘मरद’ और बाल बच्चों को खिलायेंगी ? अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि दुनिया में ऐसी कौन सी चीज है जो बढती नहीं है ? बच्चा पैदा होता धीरे धीरे बढता है और देखते ही देखते जवान हो जाता है पेड पौधे आदमी लगाता है वे भी पानी और धूप पाकर बढने लगते हैं और फिर पेड का रूप धारण कर लेते हैं नौकरी जब इंसान ज्वाईन करता है तो तनखा कितनी कम होती है फिर धीरे धीरे उसमें ‘‘इंन्क्रीमेन्ट’’ लगते हैं मंहगाई भत्ता बढता है हाउस रेन्ट बढ कर मिलने लगता है और तनखा में बढोतरी होती जाती है यही हाल पोस्ट का होता है जो पहले ‘क्लर्क’ के रूप में भरती होता है वो कुछ ही सालों में ‘अफसर’ हो जाता है. जब देष में भ्रटाचार बढ रह है, आबादी बढ रही है, गंुडे लुच्चे बढ रहे हैं, नेता बढ रहे हैं अपराधी बढ रहे है, गरीबी और अमीरी देानों बढ रही ह.ै जब सारी की सारी चीजें बढती जा रही है तो यदि मंहगाई भी बढ गई तो इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की जरूरत भला क्या है? जनता तो चाहती है कि मंहगाई भर का ‘‘विकास’’ न हो, वह अविकसित होकर रह जाये,उस पर भर जवानी न आये तो ऐसा तो होना संभव नहीं है उसको भी हक है सबसे साथ बढने का. आखिर है तो वो भी इसी देष की सदस्य. जब हर कोई जवान हो रहा है पर मंहगाई बेचारी बच्ची बनी रहे ये तो गलत बात है न जब सरकार हजारों रूपये तनखा बढा देती है चौथा पांचवा, छटवा, सातवा पता नही कौन कौन सा आयोग बैठाकर तनखा में बढोतरी कर देता है तब कोई ‘‘चूं’’ भी नहीं करता कि हे सरकार क्यों हमारी तनखा बढा रही हो हम तो काम धेले का नही करते सचमुच यदि काम के हिसाब से तनखा मिलने लगी तो नगर निगम हो या कलेक्ट्रेट या और कोई दूसरा सरकारी दफतर वहां के हर कर्मचारी को उल्टा सरकार के पास हर महीने पैसे जमा करने पडेंग.ें अरे भाई मंहगाई बढ रही है तो वेतन भी तो बढ रहा है और फिर जितने लोग हाय तौबा मचा रहे है उनसे पूछो कि हुजूर जब पैट्रोल दस रूपैया लीटर था आप तब भी उतनी गाडी चलाते थे और आज पचास रूपया है तो भी उसको उतना ही रगड रहे हो. गैस के दाम बढने से हलाकान हो रही गृहणियाों से भी कोई पूछे कि माताओ बहनों गैस के दाम बढने के बाद क्या कभी आपने ‘‘चूल्ह’े’’ में, ‘‘कोयले की या बरूदे की सिगडी’’ में रोटी बनाने की कोषिष करी है अपने को भी मालूम है कि इसका उत्तर ना ही हेगा ये ते ‘‘चोचले बाजी’’ है पहले भी ऐसी ‘‘नौटंकिया’’ होती आई हैं पर सरकार भी कोई कम उस्ताद तो है नही. अभी गैस में पैतीस रूपया बढे है ज्यादा हल्ला मचने के बाद उसमें पांच रूपये की कटौती कर देगी हल्ला मचाने वाली भी शांत हो जायेंगे और सरकार का तीस रूपये बढाने का उदेदष्य भी पूरा हो जायेगा. वैसे सी आजकल बीस पच्चीस पैतीस रूपये की औकात ही क्या है जहां हर नेता और अफसर के पास करोडो की संम्पति हो वहां इस तरह की छोटी मोटी बढोतरी से उनकी सेहत पर कोई फर्क नही पडता हां फर्क पडता है गरीब की पीठ पर लेकिन उस गरीब की चिन्ता किस को है यदि आप गरीब हो तो उसमें अमीर या सरकार क्या करे? अपने करमों का फल भोगो. अपनी तो मंहगाई को एक ही सलाह है कि तुम तो जी भर के बढो जिसको सामान लेना होगा लेगा जिसे नही लेना होगा नहीं लेगा. इनके चक्कर में तुम अपने विकास पर ‘‘ब्रेक’’ मत लगाना क्योंकि यदि एक बार इन मीडियावालों की ‘‘चिल्लपों’’ से डर जाओगी ते ये लोग जब चाहे तुम्हे दम देते रहेंगे तुम तो शान से बढो हर कोई आगे बढने की कोषिष में अपनी पूरी जिन्दगी लगा देता है और वो ही तुम करो समझ गईं न?