Thursday, June 4, 2009

इसके लिये सर्वे की क्या जरूरत थी ?

चैतन्य भटट
हांगकांग के पोलिटिकल एंड इकानामिक रिस्क कंसलटेंसी ने हाल ही में एक सर्वे किया है जिसमें यह बात सामने आई कि हमारे ‘‘महान भारत‘‘ के राजनेता सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं और देश के नौकरशाह सबसे ज्यादा सुस्त। इस सर्वे में कहा गया है कि हिंदुस्तान के नौकरशाहों के साथ काम करना बेहद पीडादायक होता है उनके काम करने की गति बहुत धीमी होती है वे सुधार में सबसे बडा रोडा है और जिस तरह से वे अपने कामों को अंजाम देतें है वो किसी भी तरह से ठीक नही हैं अपने को तो एक बात समझ से बाहर है कि इतनी सी बात का पता लगाने के लिये इस एजेन्सी ने क्यों इतना वक्त और पैसा बर्बाद किया। किसी भी राह चलते आदमी से पूछ लेते कि भैया बताओ आपके देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट कौन है? तो सोता हुआ आदमी भी एक ही झटके में कह देता ‘‘नेता‘‘ और कौन? किसी नवजात शिशु से सूतिका ग्रह में पूछ लेते कि बेटा बताओ कि जिस देश में तुम अभी हाल ही में जन्मे हो वहां सबसे ज्यादा पैसा खाने वाला कौन है? तो वो भी साफ कह देगा कि ‘‘नेता‘‘ और जब उससे पूछोगो कि नौकरशाही के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है तो वो इतना ही कहेगा कि भाईसाहब मै पैदा तो हो गया हूं पर मेरा ‘‘बर्थ सार्टिफिकेट‘‘ कब मिल पायेगा इसकी कोई गैरंटी नहीं है ये भी हो सकता है कि मेरा ‘‘बर्थ और ‘‘डेथ सार्टिफिकेट‘‘ एक साथ ही बनें क्योकि यदि मेरे बाप ने सिर्फ आवेदन दिया और उसके साथ गांधी जी की फोटो वाला नोट संलग्न नही किया तो वो ऐडिया रगडता रहेगा पर मेरा जन्म प्रमाणपत्र वो अपने जीते जी तो नही बनवा सकेगा। इतनी सी बात के लिये इतना बडा सर्वे। इन विदेशी लोगों को भी लगता है कुछ काम बचा नही है सो बेठे ठाले इस तरह के सर्वे में अपना और दूसरों को समय बरबाद करते रहते हैं। अरे सर्वे वालो ये तो सोचो कि एक आदमी जब नेता बनता है तो उसे कितने पापड बेलने पडते हैं लाखों रूपये अपने आकाओं की ‘‘जय जयकार‘‘ में खर्चने पडते हैं उनके लिये भीड इकठठी करने, गाडी घोडों की व्यवस्था, फूल मालाओं में कितना पैसा खर्च होता है और जब इन सब इम्तहानों के बाद टिकट मिलती है तो चुनाव में करोडों रूपये बहाने पडते हैं भले ही हिसाब वे हजारों का दें। अब जब इतना पैसा खर्च होगा तो वो कमायेगा नही तो क्या ‘‘तानपूरा‘‘ लेकर भजन करेगा? अपना ही पैसा वसूल करने के लिये ठेके, टांसफर पोस्टिंग के लिये जब वो पैसे लेता है तो लोग बाग उसको भ्रष्ट कहने लगते हैं अरे भाई ये तो बिजनिस है कल पूंजी लगाई थी आज वसूली नही करेगे तो क्या करेंगे ? घर लुटा कर तमाशा भला कौन देखना पसंद करेगा? रहा सवाल नौकरशाहों को तो ये सर्वे वाले इनको ‘‘सुस्त से चुस्त‘‘ कैसे बनाया जाता है ये तरकीब नही जानते यदि ये तरकीब जान लेते तो कभी आरोप न लगाते कि भारत की नौकरशाही सुस्त है। चलो उन्हें नही पता तो हम बतलाये देते हैं इनको ‘‘सुस्त से चुस्त‘‘ बनाने का तरीका। बस नोट रखो टेबल पर और फिर देखो फाईल में कैसे पंख लगते हैं जिस काम में एक महीना लगता होगा यदि वो आधे घंटे में न हो जाये तो यह बंदा अपना सर मुडाने के लिये तैयार है सबके बाल बच्चे हैं सबकी बीबीयां है उनके खर्च क्या अकेली तनख्वाह से पूरे हो सकते हैं जब तब ‘‘ऊपरी इनकम‘‘ न हो तब तब काम करने का मजा भी तो नही आता। तनख्वाह तो इसलिये मिलती है कि काम करना है पर काम कब और कितनी जल्दी करना है इसके लिये तो जब तक जेब दो नंबर के नोटों से गरम नही हो जाती तब तक काम करने की गरमी कहां पैदा होती है? अपनी तो इन सर्वे वालों को एक राय है कि यदि इन नौकरशाहों की चुस्ती और फुरती देखना हो तो किसी भी सरकारी दफतर में चले जाओं और कामकरवाने के पहले ही कडकडाते नोट रख दो फिर देखो कैसे काम होता है एक बार ये प्रयोग करके देखो अगली बार जब सर्वे का रिजल्ट घोषित करोगे तो सबसे चुस्त भारत के ही नौकरशाह होंगे क्या समझे

Wednesday, June 3, 2009

एक के तीन नही जीरो हो गये

अहमदाबाद के ठग अशोक डडेजा को पुलिस ने पकड लिया उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो लोगों के पैसे ‘‘तिगुने‘‘ कर देता था। पुलिस का आरोप है कि उसने लोगों को एक का तीन करने का लालच देकर करोडो रूपये ठग लिये और उनकी ही शिकायत पर उसने अशोक डडेजा को पकडा है। अभी तक तो अपन ने मशहूर क्रिकेट खिलाडी ‘‘अजय डडेजा‘‘ का ही नाम सुना था पर अब एक और डडेजा ने इस क्रिकेटर की ख्याति को भी पीछे छोड दिया है। लोग बाग अपना सारा सामान, गहने बेचकर ठग राज के दरबार में पैसे जमा करते थे और वो एक हफते में उन पैसों को तीन गुना करके वापस कर देता था पर बाद में पता चला कि भाई जी लोगों के करोडो रूपये लेकर फरार हो गये। अब लुटे पिटे लोग पुलिस के दरवाजे पर दस्तक दे रहे है कि उन्हें उनके पैसे वापस दिलवाओ अब इनसे कोई पूछे कि भैया जी जब एक के तीन हो रहे थे तब तो आपने पुलिस से आकर नही पूछा कि हम पैसे तिगुने करवायें या न करवाये। उस वक्त तो किसी को कानों कान खबर न हो लोग इस कोशिश में लगे रहते थे कि कहीं ऐसा न हो कि पडोसी अपने पैसे तिगुने करवाने पंहुच जाये और उनके पैसे तिगुने न हो पाये। उस वक्त तो अशोक डडेजा इन्हें कुबेर के रूप में दिखाई दे रहा था और आज वही कुबेर उन्हें महाठग, डाकू, धोखेबाज, चीटर और पता नहीं क्या क्या दिखाई दे रहा है। दुनिया में ऐसा कौन होगा जो एक हफते में आपके एक लाख तीन लाख में बदल दे पर कहते हंै न ‘‘लालच बुरी बलाय‘‘ हर एक को लग रहा था कि ऐसा मौका फिर कभी आये न आये इसलिये जितना माल है उसको तिगुना करवा लो। अपने अशोक डडेजा ने भी कई लोगों के नोट तिगुने कर भी दिये और जब ये खबर दूसरों को लगी तो अशोक भाई के यहां लाईन लगने लगी कोई बैग में नोट भरकर ला रहा था तो कोई बोरों में। कोई अपने एक हार को तीन हार में तब्दील करवाना चाह रहा था तो किसी को बीबी के तमाम गहने तिगुने करवाने की लालसा थी। बस फिर क्या था अशोक डडेजा देखते ही देखते भगवान बन गया और लोग उसके भक्त। किसी ने मना भी किया कि भैया इस चक्कर में मत पडो तो वो सलाह देने वाला भला आदमी उन्हें दुश्मन जैसा दिखाई देने लगा पर अब जब सारी जायजाद लुट गई है तो लोग बाग जार जार आंसू बहा रहे है पर अब रोने से क्या होगा ? जो कुछ लुटना था वो तो लुट ही गया भले ही पुलिस ने उसके पास से एक करोड से भी ज्यादा की रकम बरामद कर ली हो पर यह रकम तो लुटने वालों के लिये ऊँट के मुंह में जीरे‘‘ के समान है और फिर ये रकम उसके पास है यानी पुलिस के पास जहां से वापस मिलना ‘‘आसमान से तारे तोडने‘‘ जैसा है इन लुटे पिटे लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति है पर क्या करें हिन्दुस्तान में ऐसे लोग आपको हर मोड, हर गली और हर चौराहे पर मिल जायेगे जो लूटने के लिये तैयार है और वे भी जो लुटने के लिये तैयार बैठे हैं। अब पोजीशन ये है कि एक के तीन करवाने वालों को माल एक का तीन नही बल्कि जीरों हो गया है इस जीरो को लेकर बैठो और अशोक डडेजा को जी भर कर गालियां दो पर माल जो जाना था वो तो चला ही गया न गालियां माल तो वापस ला नही सकती?