Thursday, June 4, 2009

इसके लिये सर्वे की क्या जरूरत थी ?

चैतन्य भटट
हांगकांग के पोलिटिकल एंड इकानामिक रिस्क कंसलटेंसी ने हाल ही में एक सर्वे किया है जिसमें यह बात सामने आई कि हमारे ‘‘महान भारत‘‘ के राजनेता सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं और देश के नौकरशाह सबसे ज्यादा सुस्त। इस सर्वे में कहा गया है कि हिंदुस्तान के नौकरशाहों के साथ काम करना बेहद पीडादायक होता है उनके काम करने की गति बहुत धीमी होती है वे सुधार में सबसे बडा रोडा है और जिस तरह से वे अपने कामों को अंजाम देतें है वो किसी भी तरह से ठीक नही हैं अपने को तो एक बात समझ से बाहर है कि इतनी सी बात का पता लगाने के लिये इस एजेन्सी ने क्यों इतना वक्त और पैसा बर्बाद किया। किसी भी राह चलते आदमी से पूछ लेते कि भैया बताओ आपके देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट कौन है? तो सोता हुआ आदमी भी एक ही झटके में कह देता ‘‘नेता‘‘ और कौन? किसी नवजात शिशु से सूतिका ग्रह में पूछ लेते कि बेटा बताओ कि जिस देश में तुम अभी हाल ही में जन्मे हो वहां सबसे ज्यादा पैसा खाने वाला कौन है? तो वो भी साफ कह देगा कि ‘‘नेता‘‘ और जब उससे पूछोगो कि नौकरशाही के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है तो वो इतना ही कहेगा कि भाईसाहब मै पैदा तो हो गया हूं पर मेरा ‘‘बर्थ सार्टिफिकेट‘‘ कब मिल पायेगा इसकी कोई गैरंटी नहीं है ये भी हो सकता है कि मेरा ‘‘बर्थ और ‘‘डेथ सार्टिफिकेट‘‘ एक साथ ही बनें क्योकि यदि मेरे बाप ने सिर्फ आवेदन दिया और उसके साथ गांधी जी की फोटो वाला नोट संलग्न नही किया तो वो ऐडिया रगडता रहेगा पर मेरा जन्म प्रमाणपत्र वो अपने जीते जी तो नही बनवा सकेगा। इतनी सी बात के लिये इतना बडा सर्वे। इन विदेशी लोगों को भी लगता है कुछ काम बचा नही है सो बेठे ठाले इस तरह के सर्वे में अपना और दूसरों को समय बरबाद करते रहते हैं। अरे सर्वे वालो ये तो सोचो कि एक आदमी जब नेता बनता है तो उसे कितने पापड बेलने पडते हैं लाखों रूपये अपने आकाओं की ‘‘जय जयकार‘‘ में खर्चने पडते हैं उनके लिये भीड इकठठी करने, गाडी घोडों की व्यवस्था, फूल मालाओं में कितना पैसा खर्च होता है और जब इन सब इम्तहानों के बाद टिकट मिलती है तो चुनाव में करोडों रूपये बहाने पडते हैं भले ही हिसाब वे हजारों का दें। अब जब इतना पैसा खर्च होगा तो वो कमायेगा नही तो क्या ‘‘तानपूरा‘‘ लेकर भजन करेगा? अपना ही पैसा वसूल करने के लिये ठेके, टांसफर पोस्टिंग के लिये जब वो पैसे लेता है तो लोग बाग उसको भ्रष्ट कहने लगते हैं अरे भाई ये तो बिजनिस है कल पूंजी लगाई थी आज वसूली नही करेगे तो क्या करेंगे ? घर लुटा कर तमाशा भला कौन देखना पसंद करेगा? रहा सवाल नौकरशाहों को तो ये सर्वे वाले इनको ‘‘सुस्त से चुस्त‘‘ कैसे बनाया जाता है ये तरकीब नही जानते यदि ये तरकीब जान लेते तो कभी आरोप न लगाते कि भारत की नौकरशाही सुस्त है। चलो उन्हें नही पता तो हम बतलाये देते हैं इनको ‘‘सुस्त से चुस्त‘‘ बनाने का तरीका। बस नोट रखो टेबल पर और फिर देखो फाईल में कैसे पंख लगते हैं जिस काम में एक महीना लगता होगा यदि वो आधे घंटे में न हो जाये तो यह बंदा अपना सर मुडाने के लिये तैयार है सबके बाल बच्चे हैं सबकी बीबीयां है उनके खर्च क्या अकेली तनख्वाह से पूरे हो सकते हैं जब तब ‘‘ऊपरी इनकम‘‘ न हो तब तब काम करने का मजा भी तो नही आता। तनख्वाह तो इसलिये मिलती है कि काम करना है पर काम कब और कितनी जल्दी करना है इसके लिये तो जब तक जेब दो नंबर के नोटों से गरम नही हो जाती तब तक काम करने की गरमी कहां पैदा होती है? अपनी तो इन सर्वे वालों को एक राय है कि यदि इन नौकरशाहों की चुस्ती और फुरती देखना हो तो किसी भी सरकारी दफतर में चले जाओं और कामकरवाने के पहले ही कडकडाते नोट रख दो फिर देखो कैसे काम होता है एक बार ये प्रयोग करके देखो अगली बार जब सर्वे का रिजल्ट घोषित करोगे तो सबसे चुस्त भारत के ही नौकरशाह होंगे क्या समझे

Wednesday, June 3, 2009

एक के तीन नही जीरो हो गये

अहमदाबाद के ठग अशोक डडेजा को पुलिस ने पकड लिया उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो लोगों के पैसे ‘‘तिगुने‘‘ कर देता था। पुलिस का आरोप है कि उसने लोगों को एक का तीन करने का लालच देकर करोडो रूपये ठग लिये और उनकी ही शिकायत पर उसने अशोक डडेजा को पकडा है। अभी तक तो अपन ने मशहूर क्रिकेट खिलाडी ‘‘अजय डडेजा‘‘ का ही नाम सुना था पर अब एक और डडेजा ने इस क्रिकेटर की ख्याति को भी पीछे छोड दिया है। लोग बाग अपना सारा सामान, गहने बेचकर ठग राज के दरबार में पैसे जमा करते थे और वो एक हफते में उन पैसों को तीन गुना करके वापस कर देता था पर बाद में पता चला कि भाई जी लोगों के करोडो रूपये लेकर फरार हो गये। अब लुटे पिटे लोग पुलिस के दरवाजे पर दस्तक दे रहे है कि उन्हें उनके पैसे वापस दिलवाओ अब इनसे कोई पूछे कि भैया जी जब एक के तीन हो रहे थे तब तो आपने पुलिस से आकर नही पूछा कि हम पैसे तिगुने करवायें या न करवाये। उस वक्त तो किसी को कानों कान खबर न हो लोग इस कोशिश में लगे रहते थे कि कहीं ऐसा न हो कि पडोसी अपने पैसे तिगुने करवाने पंहुच जाये और उनके पैसे तिगुने न हो पाये। उस वक्त तो अशोक डडेजा इन्हें कुबेर के रूप में दिखाई दे रहा था और आज वही कुबेर उन्हें महाठग, डाकू, धोखेबाज, चीटर और पता नहीं क्या क्या दिखाई दे रहा है। दुनिया में ऐसा कौन होगा जो एक हफते में आपके एक लाख तीन लाख में बदल दे पर कहते हंै न ‘‘लालच बुरी बलाय‘‘ हर एक को लग रहा था कि ऐसा मौका फिर कभी आये न आये इसलिये जितना माल है उसको तिगुना करवा लो। अपने अशोक डडेजा ने भी कई लोगों के नोट तिगुने कर भी दिये और जब ये खबर दूसरों को लगी तो अशोक भाई के यहां लाईन लगने लगी कोई बैग में नोट भरकर ला रहा था तो कोई बोरों में। कोई अपने एक हार को तीन हार में तब्दील करवाना चाह रहा था तो किसी को बीबी के तमाम गहने तिगुने करवाने की लालसा थी। बस फिर क्या था अशोक डडेजा देखते ही देखते भगवान बन गया और लोग उसके भक्त। किसी ने मना भी किया कि भैया इस चक्कर में मत पडो तो वो सलाह देने वाला भला आदमी उन्हें दुश्मन जैसा दिखाई देने लगा पर अब जब सारी जायजाद लुट गई है तो लोग बाग जार जार आंसू बहा रहे है पर अब रोने से क्या होगा ? जो कुछ लुटना था वो तो लुट ही गया भले ही पुलिस ने उसके पास से एक करोड से भी ज्यादा की रकम बरामद कर ली हो पर यह रकम तो लुटने वालों के लिये ऊँट के मुंह में जीरे‘‘ के समान है और फिर ये रकम उसके पास है यानी पुलिस के पास जहां से वापस मिलना ‘‘आसमान से तारे तोडने‘‘ जैसा है इन लुटे पिटे लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति है पर क्या करें हिन्दुस्तान में ऐसे लोग आपको हर मोड, हर गली और हर चौराहे पर मिल जायेगे जो लूटने के लिये तैयार है और वे भी जो लुटने के लिये तैयार बैठे हैं। अब पोजीशन ये है कि एक के तीन करवाने वालों को माल एक का तीन नही बल्कि जीरों हो गया है इस जीरो को लेकर बैठो और अशोक डडेजा को जी भर कर गालियां दो पर माल जो जाना था वो तो चला ही गया न गालियां माल तो वापस ला नही सकती?

Monday, May 25, 2009

सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया

लो देखो अब हर वो राजनेता और राजनीतिक दल अपने अपने दलों के नेताओं के साथ मुंह लटका कर अपनी हार की समीक्षा करने में लग गया है। न उन्हें खाने की चिन्ता है न पीने की। वे न तो किसी से मिल रहे है और न ही उनसे कोई मिल पा रहा है। एक कमरे में बंद ये नेता गलबहियां डालकर जार जार आंसू बहाते हुये अपने हार जाने का गम गलत कर रहे हैं कोई कह रहा है कि जनता ने हमें धोखा दे दिया तो कोई कह रहा है कि हमने जनता से दूरी बना ली थी जिसके कारण हमें ये दिन देखना पड रहा है। चाहे वे लेफट वाले हों या फिर लालू जी या फिर रामविलास पासवान और या फिर अपने पीएम इन वेटिंग आडवानी जी। हरेक का चेहरा लटका हुआ है और चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई है। लालू जी कह रहे हैं कि अब वे एक साल दिल्ली की राजनीति नहीं करेंगे। अरे भैया दिल्ली की राजनीति तो तब करोगे न जब दिल्ली में कोई पोस्ट होगी। बिहार और दिल्ली दोनो जगह की पोस्टें तो आप अपने करमों से गंवा बैठे हो बिहार में जिस कुरसी पर बरसों तक आपने और आपकी पत्नी ने राज किया उस कुरसी पर अब नीतीश कुमार कब्जा जमाये बैठे हैं इधर दिल्ली में ‘‘लेडीज फस्र्ट‘‘ के नाते ममता ने आपकी खाली कुरसी पर अपना रूमाल रख कर उसको एंगेज कर दिया है अब बेचारे लालू जाये तो जायें कहां? यही हाल अपने लेफट के नेताओं का है हार की समीक्षा में जुटे है भाई लोग। एक कह रहा है हमें जनता के पास जाना होगा उसके और हमारे बीच काफी दूरी बढ गई है। अब ये बात समझ में आ रही है जब जनता ने बत्ती दे दी वरना पहले तो अपने आप को ‘‘जोधा‘‘ समझने लगे थे ये लोग। जब चाहे सरकार को अडी पटकते रहते थे कि यदि हमारी बात नही मानी तो हम सरकार की सारी की सारी कुरसियां गिरा देंगे पर हुआ उलटा वे तो किसी की कुरसी नही खिसका पाये उलटे उनकी ही कुरसियां खिसक गई अब इन कुरसियों के ‘‘हत्थे‘‘ पकड कर वे रो रो कर हलाकान हो रहे हैं यही हाल अपने नेता पासवान जी का है कभी जीतने का ‘‘रिकार्ड‘‘ बनाया था भाई साहब ने पर जनता ने ऐसी पटखनी दी कि अपनी पार्टी तो छोडो अपने खुद के ही जीतने के लाले पड गये। हाल ये हो गया है कि दिल्ली आयेगे तो सिर्फ घूमने फिरने के लिये क्योकि अब कोई ‘‘धनी धोरी‘‘ तो बचा नही है उनका दिल्ली में। बहुत ऐश कर लिये थे अब राम धुन भजो और पांच साल तक इंतजार करो कि शायद किस्मत फिर पलटी खा जाये। इन नेताओं को अब सब कुछ याद आ रहा है जैसे फिल्मों में ‘‘फ्लेशबैक ‘‘ में पुरानी बातें दिखाई जाती है वैसा ही फ्लेशबैक इनको भी नजर आ रहा है। अपने अपने मंत्रालय के सामने मूंगफली चबाते हुये ये सोच रहे है कि वो भी क्या दिन थे जब अपन यहां के राजा थे पर आज दरबान भी बिना ‘‘पास‘‘ लिये वहां घुसने नही दे रहा है किसी ने सच ही कहा है समय किसी का नही होता शायद इसी को आधार मानकर किसी गीतकार ने ये गीत लिखा था ‘‘सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया‘‘ यह गाना इन पर पूरी तरह सटीक बैठता है।

Saturday, May 23, 2009

कोर्ट का फैसला है मानना तो होगा ही

देश में सबसे बडी अदालत ही होती है। अदालतें सरकारी फैसलों को भी बदलने का दम रखती है उस पर देश का सुप्रीम कोर्ट तो सबसे बडी ताकत रखता है। उसके न्यायाधीश जो निर्णय देते हैं वो कानून बन जाता है इसलिये यह बताया जाता है कि कोर्ट के फैसलों को सर माथे पर रखना चाहिये। बडे बडे लोग जब कोर्ट से मुकदमा हार जाते है उसके बाद भी ये ही कहते हैं कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है अब जिस न्यायालय की इतनी ताकत हो यदि वो कह रहा हो कि बीबी जैसा कहे वैसा ही करो तो जिन्दगी आराम से गुजरेगी तो कौन ऐसा बेबकूफ होगा जो जिन्दगी आराम और शांती से गुजारना न चाहता हो। वैसे भी कोर्ट ने तो यह बात काफी लेट कही है यहां तो हर आदमी पहले से ही बीबी की हां में हां मिला रहा है और ये जरूरी भी है क्योंकि हरशादी शुदा मर्द को मालूम है कि बीबी से पंगा लेना अपने आप को संकट में डालना ही है क्योकि जो लोग बीबी की बात नही मानते हैं उन्हे पत्नी पीडित संघ बनाना पड जाता है जहां तक अपने को मालूम है भारतीय संस्कार में नारी को सबसे बडा दर्जा दिया गया है दुर्गा जी ने बडे बडे राक्षसों का संहार कर दिया था। महाकाली का तो रूप ही ऐसा होता है कि आदमी मारे भय के कांप जाता है उनके तेज के सामने किसी का तेज नही ठहरता। देश के सबसे बडे कोर्ट ने ये सुझाव बडे अनुभव के बाद दिया है ऐसा लगता है और तो और उन्होंने तो वकीलों को ये सलाह भी दे दी है कि अपनी कमाई ले जाकर सीधे बीबी के हाथों में रख दो अपना मानना तो ये है कि अस्सी परसेंट मर्द अपनी तनख्वाह अपनी बीबी के हाथों में ही पहले से ही रखते आ रहे है क्योकि कहते है न पैसा सारी विवादों की जड होता है। पैसा भाई भाई बाप बेटे में जब झगडा करवा सकता है तो मियां और बीबी की तो बिसात ही क्या है सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव के बाद लाखों लोगों ने अपनी अपनी बीबियों को ही अपना खुदा मान लिया है क्योकि वे भी जानते है कि कोर्ट जो कुछ भी कहता है पूरें तथ्यों के आधार पर ही कहता है जहां तक बीबियों को सवाल है तो इसमें तो कोई शक नही है कि यदि बीबी प्रसन्न हो तो आपके सारे गुनाह वो माफ कर देती है बस उसको खुश करने की कला आपको आनी चाहिये और ये भी कोई ज्यादा कठिन काम नही है कभी कभार साडी लाकर दे दो। कभी गहने बनवा दो। किसी दिन लम्बी सैर पर चले जाओ। उसकी खूबसूरती की तारीफ कर दो। उसके भाई बहनों को कोई भेंट दे दो। अपने ससुराल की जम कर बडाई कर दो। पडोसन को उसकी तुलना में बदसूरत बतला दो भले ही वो ऐश्वर्या राय ही क्यों न हो। बस इतने से तो गुर है जो बीबी को खुश रखने के लिये पर्याप्त है। इतने में ही तो उसे लगता है कि उसका मर्द कितना अच्छा और उसे जी जान से चाहने वाला है और वो खुश हो जाती है। कहते हैं न पति और पत्नी गाडी के दो पहिये होते हैं अपना ख्याल तो ये है कि हर शादी शुदा मर्द को पिछला पहिया बन जाना चाहिये और बीबी को बना देना चाहिये अगला पहिया। इससे फायदा ये होगा कि जहां जहां अगला पहिया जायेगा पीछे वाले को मजबूरी में उसके पीछे पीछे जाना ही पडेगा और जब वो उसके पीछे पीछे जायेगा तो गाडी के यहां वहां भटकने की गुंजाईश ही खत्म हो जायेगी। कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है उसे तो अपन ने पत्थर की लकीर मानकर उस पर अमल भी शुरू कर दिया है क्योंकि कि अपन भी चाहते हैं कि जितने दिनों की जिन्दगी बची है सुख और शांति से गुजर जाये।

Monday, May 18, 2009

लोकसभा चुनाव रिजल्ट और फिल्मी गाने

लो साहब लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आ ही गया। सारे ज्योतिषी सारे मीडिया वालों के अनुमान फेल करते हुये कांग्रेस ने अपने आप को ‘‘सुपर पावर‘‘ बना लिया कल तक जो दल कांग्रेस को आंखे दिखा रहे थे वे सारे के सारे याचक की मुद्रा में उसके दरवाजे पर लार टपकाते हुये खडे हैं। जैसे हिन्दी फिल्मों में हर सिचुअशन के लिये फिल्मी गीतकारों ने गाने लिखे हैं वे सारे के सारे गाने इस रिजल्ट के बाद हर दल पर फिट होते हुये दिखाई दे रहे हैं। शायद इन फिल्मी गीतकारों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके द्वारा लिखे गये ये फिल्मी गाने कभी राजनैतिक दलों और नेताओं पर फिट बैठेगे पर आज वो दिन आ ही गया है जब ये गाने इनके लिये सही साबित हो रहे हैं। सबसे पहले कांग्रेस को ही लें अभी तक क्षेत्रीय दलों के बंधन में जकडी कांग्रेस इनके ब्लेकमेल से मुक्त होकर गा रही है ‘‘अब कोई गुलशन न उजडे अब वतन आजाद है‘‘ इधर वाममोर्चा वाले अपने वोटरों के सामने आंसू बहाते हुये गा रहे है ‘‘हम से का भूल हुई जो ये सजा हमको मिली अब तो चारों ही तरफ बंद है सत्ता की गली‘‘ उधर भाजपा वाले कितनी आशा लगाये थे कि वे सबसे बडे दल के रूप में उभर कर सामने आयेगे पर चुनाव के रिजल्ट ने उनको यह गीत गाने के लिये मजबूर कर दिया। ‘‘क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार में चाहा था क्या मिला तेरे प्यार में‘‘ भाजपा के ही पीएम इन वेटिंग अपने आडवानी जी के सामने अब ये ही गीत बचा है कि वे इसे गाये ‘‘तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला मैं बहुत दूर बहुत दूर चला‘‘ लालू यादव जो अभी तक राम विलास जी को अपना सब कुछ मानकर कांग्रेस को आंखे तरेर रहे थे अब कांग्रेस के दरवाजे पर खडे होकर गुनगना रहे हैं ‘‘तेरी राहों में खडे है दिल थाम के हाय हम है दीवाने तेरे नाम के‘‘ कभी कभी इस गाने की बजाय ये इस गीत की तान भी वे छेड देतें हैं ‘‘तेरे दर पर आया हूं कुछ करके जाऊँगा झोली भर के जाऊँगा या मर के जाऊँगा ’’ रहा नीतीष कुमार और शरद यादव का तो वे तय नही कर पा रहे है कि वे क्या करें इसलिये दोनो मिलकर कोरस गा रहे है ‘‘मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं बडी मुश्किल में हूं कि किधर जाऊं ‘‘ अपनी बहन जी मायावती जिस तीसरे चौथे पांचवे छटवे मोर्चे के साथ मिलकर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाव संजो रही थी अब सलमा आगा की आवाज में गा रही हैं ‘‘दिल के अरमां आंसंओ में बह गये हम वफा करके भी तनहा रह गये‘‘ उधर मुलायम और अमर के सामने एक ही रास्ता बचा है कि वो कांग्रेस के दरवाजे पर खडे होकर ये गीत गायें ‘‘मुझ को अपने गले लगालो ए मेरे हमराही तुमको क्या बतलाउ मै कि तुमसे कितना प्यार है‘‘ पश्चिम की शेरनी ममता अपनी जीत पर फूली नही समा रही है और इठला इठला कर कांग्रेस के साथ गा रही हैं ‘‘तुम आज मेरे संग हंस लो तुम आज मेरे संग गालो हंसते गाते इस जीवन की उलझी राह संभालों‘‘सबसे बुरा हाल तो अपने रामविलास भैया का है अपने दो चार चेलों के दम पर हर बार मंत्रीमंडल में षमिल होने वाले भाई जी अब चुपचाप अकेले अपने घर की ओर ये गाना गाते हुये जा रहे हैं ‘‘चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला‘‘ इन सबसे इतर मतदाता अपने बाजुओं को फडफडातें हुये गा रहा है ‘‘जो हमसे टकरायेगा चूर चूर हो जायेगा‘‘ बीच बीच में इन पालीटिकल पार्टियों को वो ये गाना भी सुना देता है ‘‘चाहे लाख करो चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई‘‘

Sunday, May 17, 2009

उल्टे चलोगे तो ये तो होगा ही

दुनिया में हर किसी को सीधा ही चलना पडता है जो भी उल्टा चलता है उसे गच्चा खाना ही पडता है माना कि भारत में यातायात लेफट से चलता है पर बाकी काम तो सीधे यानी राइट से ही होते हैं दाहिना हाथ हर अच्छे काम के लिये उपयोग में आता है किसी की पूजा करना है तो दाहिने हाथ से ही होती है प्रसाद दाहिने हाथ में लिया जाता है अधिकांश लोग दाहिने हाथ से लिखते है अपने सारे काम इसी हाथ से ही करते है माथे पर चंदन इसी हाथ से लगाया जाता है यहां तक कि किसी को रहपट भी मारना होता है तो दाहिने ही हाथ का प्रयोग किया जाता है हर शुभ काम में दाहिने हाथ ही प्रयोग होता है बांये हाथ का उपयोग किस काम के लिये किया जाता है यह बतानें की जरूरत नहीं है पर इतना सब कुछ जानने के बाद भी यदि ये कम्युनिस्ट लेफट यानी उल्टी चाल चल रहे थे तो ये तो होना ही था जो उनके साथ हुआ। बडी बडी बातें करते थे अपने करात साहब। जब चाहे बेचारे मनमोहन सिंह को अडी पटकते रहते थे ये मत करो। ये करो। ये किया तो ठीक नही होगा। मानो मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री न हुये घर को छोटा बच्चा हो गये कि हर बात में उसे टोका जाये। माना कि आप कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे और सपोर्ट भी इसलिये कर रहे थे कि कही भाजपा वाले सत्ता में न आ जाये वरना कांग्रेस तो आपको कभी फूटी आंख नही सुहाती थी भाजपा के डर से कांग्रेस से हाथ मिलाया तो था पर यहां भी वो ही लेफट यानी बांया हाथ मिलाये हुये थे अब बांये हाथ का बंधन कितना मजबूत रहेगा तो परमाणु समझौते का जरा सा धक्का लगा और हाथ छूट गया। आपको लगा था कि कांग्रेस उनका हाथ छूटते ही धारम धार बह जायेगी पर वे नही जानते थे कि कांग्रेस के पंजे को थामने वाले और भी थे और यही हुआ। आपका हाथ छूटते ही कई दूसरे हाथों ने कांग्रेस के पंजे को लपक लिया। इस चुनाव में आपको इस बात का अहसास दिला दिया वोटरों ने कि उल्टे रास्ते चलने वालों का हश्र क्या होता है? जिस पश्चिम बंगाल और केरल के दम पर ये लोग इतराते थे वहां इनकी ऐसी मटटी पलीद हुई कि दिन में तारे नजर आ गये अब कह रहे है कि हम विपझ में बैठेगे हुजूर जब हार गये हो तो विपझ में तो बैठना ही पडेगा कौन सा अहसान कर रहे हो देश वालों पर ये बतला कर कि हम अब विपझ में बैठेगे। विपझ में नही बेठोगे तो और कहां बेठोगे? आप लोगों के लिये कोई भी कुरसी खाली नही बची है रहा सवाल कांग्रेस का तो कल तक वो आप लोगों का मुह ताकती थी अब आप लोगों को उसका मुंह ताकना पडेगा वैसे भी आप लोगों के पाखंड से सारे भारत के लोग परिचित है दुनिया भर से कम्युनिज्म ने विदाई ले ली पर आप अभी भी उसे उसी तरह चिपकाये घूम रहे हो जैसे बंदरिया अपने मरे बच्चे को अपनी छाती से चिपकाये घूमती है पर देख लिया न आप लोगो ने उल्टा चलने का फल। अरे भैया ये तो सोचो कि सडक पर भी जो आदमी चलता है वो जब तक सीधा नही चलेगा तब तक अपने घर कैसे पहुंचेगा पर आप लोग तो उल्टे चल रहे थे इसलिये फिर वही पंहुच गये जहां से शुरू किया था अभी भी वक्त है अपना नाम लेफट से बदल कर राइट कर लो और सीधे रास्ते चलना स्टार्ट कर दो भगवान ने चाहा तो जैसे सबकी इच्छा पूरी होती है आप लोगों की भी इच्छा कभी न कभी पूरी हो ही जायेगी इति शुभम ।